रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गर्वनर और जाने-माने अर्थशास्त्री रघुराम राजन इस वक्त सुर्खियों में बने हुए हैं। इसका कारण यह है कि उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा में अपनी भागीदारी दी। राजस्थान में वे न केवल राहुल गांधी के साथ पैदल चले, बल्कि उनके साथ बैठकर अनौपचारिक चर्चा की। राजनीति और अर्थशास्त्र इन दो क्षेत्रों की दिग्गज हस्तियों ने कई जरूरी मुद्दों पर सार्थक चर्चा इस बातचीत में की। जैसे राहुल गांधी ने रघुराम राजन से पूछा कि आप देश की मौजूदा अर्थव्यवस्था को किस तरह से देखते हैं, जिस पर उनका जवाब था कि विकास की रफ्तार धीमी है।
महंगाई विकास में बाधक है। कोरोना के कारण दिक्कतें बढ़ी हैं, लेकिन विकास दर पहले से ही कम थी। बढ़ती आर्थिक असमानता के मुद्दे पर रघुराम राजन ने बताया कि कोरोना में अमीरों को कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि वे घर से काम कर सकते थे। लेकिन कारखाने बंद होने से गरीबों के लिए मासिक वेतन बंद हो गए, इन सबसे असमानता और बढ़ी। रघुराम राजन ने केवल समस्याओं पर बात नहीं की, कुछ महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए, जैसे दूसरी हरित क्रांति संभव है, बशर्ते हम नए तरीके से सोचें। खेतों के किनारे प्रोसेसिंग इकाइयां लगानी चाहिए, इससे ऊर्जा की खपत कम होगी, यहां के सस्ते श्रम का लाभ उठाना चाहिए।
रघुराम राजन ने बताया कि अगर सरकारी नीतियों में एकरूपता रहें, तो छोटे उद्योगों को बड़ा बनाया जा सकता है। सरकार मदद करती है, तो छोटे व्यवसाय बड़े बन सकते हैं। आयात-निर्यात की नीतियों को टिकाऊ बनाने का सुझाव पूर्व आरबीआई गर्वनर ने दिया और इस बात पर जोर दिया कि इसमें किसानों के हितों का भी ध्यान रखना चाहिए। बेरोजगारी के मुद्दे पर रघुराम राजन ने इस बात को स्वीकार किया कि लोग सरकारी नौकरियां चाहते हैं, लेकिन वहां रोजगार के अवसर कम हैं। जबकि निजी क्षेत्र अधिक रोजगार दे सकते हैं। निजी क्षेत्रों और कृषि में अगर तकनीकी का इस्तेमाल बढ़ाया जाए, तो रोजगार पैदा किए जा सकते हैं।
राहुल गांधी ने सवाल किया कि श्वेत क्रांति, हरित क्रांति और कम्प्यूटर क्रांति के बाद अब कौन सी क्रांति हो सकती है, तो उन्होंने जवाब दिया कि अब सर्विस क्रांति हो सकती है। जहां हमें यहीं से दूसरों को सेवाएं दे सकते हैं। इसके अलावा रघुराम राजन ने कहा कि भारत जोड़ो यात्रा सांप्रदायिक सौहार्द्र और भाईचारे को बढ़ाने के लिए है, जो जरूरी है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र हमारी ताकत है, बहुत से देश हमारी ओर देख रहे हैं, ऐसे में भारत मिसाल पेश कर सकता है।
राहुल गांधी और रघुराम राजन की लगभग आधे घंटे की यह बातचीत सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर उपलब्ध है और जिसे भी देश-दुनिया के आर्थिक, सामाजिक हालात के बारे में समझ विकसित करने का मन हो, वो इस बातचीत से लाभ उठा सकता है। राहुल गांधी चाहते तो केवल अपनी जानकारियों में इजाफे के लिए रघुराम राजन से चर्चा करते और इस बातचीत को अपने तक ही रखते। मगर वे इस बात को समझते हैं कि राजनीति का काम केवल चुनाव लड़ना नहीं है। राजनीति केवल सत्ता हासिल करने का जरिया नहीं है।
बल्कि राजनीति का एक महती उद्देश्य जनजागरुकता फैलाना है। ताकि लोग अपने अतीत और वर्तमान का तार्किक विश्लेषण करें, अपने आसपास की दुनिया से परिचित हों, बदलाव को समझने की कोशिश करें और फिर अपने अच्छे या बुरे का फैसला खुद करें। कांग्रेस के पुराने नेता भी यही करते थे। गांधीजी और नेहरूजी की किताबें इसका प्रमाण हैं, जिनमें देशप्रेम की भावना तो है ही, लेकिन अपने गुण-दोष का तार्किक विश्लेषण भी है, जिन्हें पढ़कर पाठक ये समझ सकते हैं कि किस तरह देश, काल और परिस्थितियों के मुताबिक फैसले लिए जाने चाहिए।
गलत परंपराओं का नुकसान क्या है, और अच्छी बातों को संभालकर कैसे रखा जाए। भावनाओं का ज्वार कुछ देर तो ऊंचाई पर ले जा सकता है, मगर उस ऊंचाई से उतनी ही तेज गिरावट भी संभव है। इसलिए वास्तविकता को समझते हुए ही नीतिगत फैसले लिए जाने चाहिए। अच्छा है कि राहुल गांधी लोकशिक्षण और जनजागरुकता की कांग्रेस की इस पुरानी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। कोरोना लॉकडाउन के वक्त भी उन्होंने अलग-अलग विशेषज्ञों से जो चर्चा की थी, उन्हें सोशल मीडिया पर प्रसारित किया था, ताकि लोग भी विशेषज्ञों की जानकारी का लाभ उठा सकें।
प्रधानमंत्री मोदी के सामने इस समय आंतरिक और बाह्य मोर्चे पर कई चुनौतियां हैं। वे वाकई मजबूत विश्वनेताओं की सूची में अपना नाम दर्ज कराना चाहते हैं, तो उसमें भाजपा को कितनी बड़ी जीत उन्होंने दिलाई, इससे अधिक ये बात मायने रखेगी कि देश उनके शासनकाल में कितना समृद्ध बना, किस तरह लोगों का जीवनस्तर ऊंचा उठा, शांति और सद्भाव के मोर्चे पर देश में कैसी स्थितियां बनीं, पड़ोसी देशों से हमारे संबंध कैसे रहे और नागरिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी जैसे लोकतांत्रिक पैमानों पर हम कहां टिके रहे। अपनी व्यस्ततम दिनचर्या से थोड़ा वक्त निकालकर श्री मोदी भी चाहें तो रघुराम राजन और राहुल गांधी की बातचीत सुन सकते हैं, क्या पता देश को न्यू इंडिया बनाने की कोई नयी तरकीब इससे उन्हें सूझे।
अच्छी बातों को सुनने से किसी का नुकसान नहीं होता। लेकिन न जाने क्यों भाजपा और भाजपा प्रायोजित मीडिया को रघुराम राजन के भारत जोड़ो यात्रा में जुड़ने और राहुल गांधी से चर्चा करने में तकलीफ हो रही है। एक समाचार चैनल ने एक कार्यक्रम इसी पर कर दिया कि क्या रघुराम राजन को इस यात्रा का हिस्सा बनना चाहिए, क्योंकि वे एक अर्थशास्त्री हैं। जबकि भाजपा की ट्रोल सेना रघुराम राजन पर टिप्पणी करते हुए डॉ. मनमोहन सिंह को भी घसीट लाई और बताया कि भारत के 10 साल उन्होंने बर्बाद कर दिए।
जबकि इस बात को दुनिया जानती है कि रघुराम राजन ने 2008 की वैश्विक मंदी की चेतावनी दे दी थी औऱ भारत डॉ. मनमोहन सिंह के कारण ही इस मंदी में मजबूती से खड़ा रहा। काबिल लोगों को साथ रखने से बेहतर शासन और मजबूत देश कैसे बनाया जा सकता है, ये उसकी मिसाल है। बहरहाल, भाजपा जिस तरह भारत जोड़ो यात्रा और रघुराम राजन की उसमें भागीदारी की आलोचना कर रही है, उसके बाद इस बातचीत की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है।